एक समय ऐसा भी था जब इन्सान और जानवर में कोई फर्क नहीं था, ...हम भी नंगे, वे भी नंगे ! बदलते समय के साथ इंसान सभ्य होता गया ,सभ्यता हमारी पहचान बन गई, हम शर्म-हया को समझने लगे, हमने इज्जत के प्रतिक - कपड़ों को अपनाया, हमारे खान-पान के तरीके भी बदले, जंगली कंद-फल की जगह हम अन्न खाने लगे , हमारी थाली में रोटी- सब्जी आ गई, हम पूरी तरह से बदल गए, हमने हमारे आगे (आदि-मानव ) लगे शब्द में से आदि शब्द को निकाल फेंका, हम मानव बन गए, अब मुझे डर है कि- महंगाई कि मार हमें फिर से आदि -मा!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
पेश है दर्द को बयां करता ये कार्टून-
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जांधिए की भी ज़रूरत क्या है
ReplyDeletebahut hi badhiya
ReplyDeleteकाजल भाई, शायद आप ठीक ही कह रहे हैं, सबकुछ उतार लिया है इस महंगाई ने, अब जांघिया भी उतार ले तो क्या गम है :) :) :)
ReplyDeleteपेड़ों पर पत्ते अभी बहुत हैं
ReplyDeleteकिस काम आयेंगे
वही तो सब कुछ छिपायेंगे
महंगाई से तब भी न बच पायेंगे
पर हवा जो चल गई तो ....