अभी पिछले जख्म भरे भी नही और ताजा जख्म उभर आए ! पिछले जख्म गैरों ने दिए थे और ताजा जख्म अपनों से मिल रहे हैं, जी हाँ ..मैं भाजपा की ही बात कर रहा हूँ , न जाने किसकी नज़र लग गई पार्टी को ? गैरों की या अपनों की ..?.....शायद अपनों की ही....
अपनों ने लूटा, गैरों में कहाँ दम था,कश्ती वहां डूबी, जहाँ पानी कम था!
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कोई कह रहा था कि भाजपा पार्टी विद डिफ़ेरेंस है।
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