एक पुरानी फ़िल्म का गाना याद आ रहा है...दाल-रोटी खाओ प्रभु के गुन गाओ ! शायद उस ज़माने में गरीब को दाल-रोटी नसीब थी, लेकिन अगर हम आज की बात करें तो..गरीब की बात तो जाने दीजिये ..मध्यमवर्गीय की थाली से भी दाल-रोटी निकली जा रही है..दालों के भाव आसमान छु रहे हैं , हरी सब्जियों को बस दूर से निहारने के दिन आ गए हैं..ऐसे में खस्सी को खाने की सोचना भी बेईमानी की बात लगती है...देखिये कार्टून....
bahut khub
ReplyDeletekhassi ?
ReplyDeleteare waah suresh ji..
bahut saalon baad ye shabd suna
bahut hi accha laga..